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स्वास्थ्य व्यवस्था की भेंट चढ़ी जिंदगी,
अस्पताल जा रही गर्भवती पहुंची यमलोक

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अस्पताल व्यवस्थाओं पर लगा सवालिया निशान ?

अस्पताल दूर, मौत निकली पास

दूरदराज के स्वास्थ्य केंद्रों में जरूरी सुविधाओं का अकाल

रेफर सेंटर ही साबित हो रहे स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र


भीमशंकर साहू /डिण्डौरी।
मध्यप्रदेश में 20 वर्षों से अधिक समय से भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, और अगर सरकार की मानें तो इन दो दशकों में प्रदेश का अप्रत्याशित विकास हुआ है। दूरदराज के इलाकों को सड़कों से जोड़ा गया है। कस्बों में स्वास्थ्य केंद्र खोले गए और हर नागरिक को शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था हुई ।
यह तो हुई विकास की बात लेकिन स्वास्थ्य व्यवस्था का जो हाल नज़र आ रहा है उससे तो यही लगता है कि प्रशासन ने स्वास्थ्य केंद्र नहीं केवल रेफर सेंटर ही खोल रखे हैं। इन केंद्रों में जरूरी सुविधाएं ही नहीं है।
इन्हीं व्यवस्थाओं का शिकार हुई डिंडौरी जिले के शहपुरा तहसील की गर्भवती महिला।
यहां शहपुरा तहसील के देवरीखुर्द निवासी गर्भवती महिला पूजा नेताम जिनकी उम्र महज 24 वर्ष थी। इनको स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया था। उक्त केंद्र में समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण महिला को जबलपुर के एल्गिन अस्पताल ले जाने की सलाह दी गई। परिजनों ने भी बिना देरी किए एंबुलेंस के द्वारा पूजा नेताम को लेकर जबलपुर के लिए निकल गए।
किंतु जबलपुर का रास्ता पूजा नेताम के लिए कभी समाप्त न होने वाला रास्ता साबित हुआ और महिला ने निवास के पास यमलोक की राह पकड़ ली
और पूजा नेताम की मौत हो गई। घटना के बाद एंबुलेंस को वापस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शहपुरा लाया गया ।
इस घटना में दो जिंदगियां जीवन की जंग हार गईं। एक वह महिला जो मां बनने वाली थी और दूसरी वह जो अभी इस दुनिया में आने की तैयारी में था ।
परिजनों ने बताया कि खून की कमी के चलते महिला को जबलपुर रेफर किया गया था।
इस घटना से प्रशासनिक दावों की कलई तो खुलती ही है, साथ ही सरकार के द्वारा लाखों – करोड़ों रुपए प्रति माह इन स्वास्थ्य केंद्रों पर खर्च किए जाते हैं, लेकिन जब इन अस्पतालों से इलाज की बात की जाती है तो नतीजा ढाक के तीन पात से अधिक कुछ नहीं होता।
स्थानीय और ग्रामीण अंचलों में बने स्वास्थ्य केंद्र और अस्पताल केवल झोलाछाप डॉक्टरों का ही कार्य कर रहे हैं। वहां सिर्फ ड्रेसिंग और पट्टी के अलावा कोई अन्य सुविधा उपलब्ध नहीं है।
अगर अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र बनाया है तो वह बेहतर सुविधा सुनिश्चित करना भी तो सरकार की जिम्मेदारी है, नहीं तो फिर झोलाछाप डॉक्टर्स ही सही हैं जो इन अस्पतालों से तो अच्छे ही हैं।
सरकारी अस्पताल में इलाज न मिल पाने की यह कोई पहली घटना नहीं है। ऐसी बातें तो यहां आम हैं। बस लोग इसे एक बुरा सपना समझ कर कुछ दिनों में भूल जायेंगे और नेताओं की नेतागिरी इसी तरह चलती रहेगी। स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए स्थानीय चहेते वेंडर सिर्फ बिल पास कराकर फलते-फूलते रहेंगे।
कुछ दिनों पूर्व क्षेत्र के युवाओं ने शहपुरा के बीएमओ डॉ सत्येंद्र परस्ते को हटाने ने मांग की थी किंतु जब तक दुर्घटना ना हो जाए प्रशासन के कानों में जूं कहा रेंगती है।

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