लेखिका- नमिता गार्गी, कला शिक्षिका
न्यूज़ डेस्क, मोर डिण्डौरी।
कला समेकित शिक्षा का तात्पर्य विभिन्न प्रकार की कलाएं जैसे दृश्य कला प्रदर्शन कला, साहित्य कला, शिक्षण अधिगम या सिखाने की प्रक्रिया है जो पाठ्यक्रम को और मजेदार बनाती है, कला कक्षा कक्ष में सीखने का आधार बन जाती है। अगर पाठ्यक्रम में कला का समावेश हो तो इसमें विशेष रूप से अमूर्त अवधारणा को स्पष्ट करने में मदद मिलती है विषय वस्तु को तार्किक, विद्यार्थी केन्द्रित और अर्थ पूर्ण तरीके से जोड़ने का कार्य करती है। कला को केंद्र बिंदु में रखकर गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान तथा भाषाओं को तथा उनकी अमूर्त अवधारणाओं के बीच संबंध स्थापित कर प्रभावी ढंग से सिखाया जा सकता है और मजेदार भी बनाया जा सकता है।
कला किसी भी कल्पना और विचारों की अभिव्यक्ति का स्वाभाविक माध्यम होती है। 2020 में बनी नई शिक्षा नीति में कला समेकित शिक्षण द्वारा शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिए कला को विभीन्न पाठ्यक्रम क्षेत्रो की विषय वस्तु से सीखने सिखाने के साथ जोड़ देना कला समेकित शिक्षा है। इसके माध्यम से हर विद्यार्थी को अलग पहचान रखने की स्वतंत्रता होती है। विद्यालय स्तर पर शिक्षा के रूप में कला समेकित शिक्षा बिना इस बात की चिंता किए कि उनका कार्य कैसा होगा और दूसरे उनके बारे में क्या सोचेंगे। हर विद्यार्थी को एक नई चीज के बारे में जानने अनुभव करने के लिए रचनात्मक स्थान प्रदान करती है। इस प्रक्रिया में परिणाम की चिंता ना करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिससे बाल मन को विषय से जुड़े भय को दूर करने में मदद मिलती है, तथा करने और देखने की उनकी खुशी में बढ़ोतरी होती है।
मूल्यांकन के नए तरीके तथा मनोविज्ञान के विकास के साथ-साथ बाल कला शब्द का जन्म हुआ । कुछ दशक पहले से ही इस शब्द ने हमारा ध्यान आकर्षित किया है। भारतीय शिक्षा नीति में भी इस और कई बदलाव शामिल किए गए हैं और यह बदलाव नई शिक्षा नीति में भी दृष्टिगत होती है। 1903 में जॅम्ससली ने अपनी पुस्तक । स्टडी ऑफ चाइल्ड हुड] में सर्वप्रथम बाल कला की चर्चा की थी। भारत में कई संस्थाएं हैं जो बाल कला के महत्व को समझते हुए कार्य कर रही हैं यहां ऐसी कई एन जी ओ है जहां नित नए बातों को उजागर किया है।
भारत सरकार द्वारा पहली शिक्षा नीति 1968 ई में बनाई गई थी। वर्तमान शिक्षा नीति में कई बदलाओ के साथ 2020 में नई शिक्षा नीति बनाई गई है जिसे 2023 से लागू किया जाना तय किया गया तथा यह शिक्षा नीति 2040 तक पूर्णतया लागू हो सके यह लक्ष्य रखा गया है। कला शिक्षण का उद्देश्य कलाकार का निर्माण करना नहीं, बल्कि कला बोध और कलात्मक व्यवहार को विकसित करना है। देखा जाए तो आज हर विषय में कला समाहित है चाहे वह गणित का प्रोजेक्ट हो या विज्ञान या समाजशास्त्र का उसमें कला विद्यमान होती है नई शिक्षा नीति मे इसे विशेष स्थान दिया गया है। कलाएं ही है जो कुंठा को कल्पना सृजन तथा सौंदर्याभिव्क्ति को विकसित करती है। विभिन्न कलाएं जैसे चित्रकला, गायन कला, वादन कला, नृत्य आदि । कला शिक्षण का उद्देश्य बौद्धिक, मानसिक तथा शारीरिक विकास को बल देना है इससे, लोक परंपराओं और कलात्मक धरोहर के प्रति लगाव पैदा होता है साथ ही बाल मन को मौलिकता की अभिव्यक्ति को भी बल मिलता है। शताब्दी के शुरुआती दशक में कला शिक्षा के गौण या लुप्त होने का खतरा बढ़ रहा था पर सी बी एस ई द्वारा बनाई गई ग्रेडिंग नीति द्वारा कला शिक्षा को बल मिला और वह अपने सहज रूप में सामने आई जिससे बच्चों में कला के लिए सम्मान तथा आत्म सम्मान के भाव की जाग्रती हुई। इस प्रवृति से रचनात्मकता आई और आपसी सहयोग की भावना भी जागृत होती है।
स्कूली स्तर पर कला शिक्षा की उपयोगिता को तीन तरीकों से समझी जा सकती है
पहला – स्वतंत्र विषय के रूप में
दूसरा -अन्य विषयों को सिखाने के माध्यम के रूप में तथा
तीसरा- जीवन कौशल विकसित करने के अवसर के रूप मे
आज भारत संपूर्ण विश्व में सांस्कृतिक गुरु या अगुआ बनता जा रहा है। पर हम भारतीयों को ही इस वृहद धरोहर -संस्कृति का पता नहीं है। हम वह देख रहे हैं जो विदेशियों द्वारा दिखाया जा रहा है यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे हमें हमारे घर के बारे में पड़ोसी बताएं विदेशियों ने जब अपने शोध में किसी कला धरोहर को स्थान दिया तब हमें उसके बड़प्पन का ज्ञान होता है, जैसे जब विदेशियों ने अजंता का विश्लेषण किया, तब हम यह समझ पाए। अजंता के कला परक तथ्यों से जुड़ पाए, तब हमे उसकी महानता के बारे में समझ आई, जब अन्य देश के कलाविदों ने बताया। यह परक यह समझ हम भारतीयों में तभी जागृत होगी जब हम कला शिक्षा को शुरुआत से महत्व देंगे। आज की नई शिक्षा नीति इतनी वृहद है कि विद्यार्थी कला के विभिन्न स्वरूपों से जुड़ते हुए, विभिन्न चरणों से गुजरते हैं। जैसे अवलोकन करना, विचार करना, कल्पना करना, खोज करना, प्रयोग करना, तर्क द्वारा निर्णय तक पहुंचना, सृजन करना और व्यक्त करना कला हमारे चारों ओर का वातावरण हमारी संवेदना को प्रभावित करती हैं। यह नई शिक्षा नीति इतनी वृहत है कि एक विज्ञान का छात्र भी अपने अन्य विषयो के साथ एक विषय संगीत भी रख सकता है कला शिक्षा से बाल विकास के लिए ही नहीं वर्ण यह देश के विकास और निरंतर आगे आ रहे देश के भविष्य के लिए भी आवश्यक है। नई शिक्षा नीति में कला विषय को जो स्थान दिया गया है उससे आगे आने वाली पीढ़ी से हम अच्छी कला परक और समझ की उम्मीद कर सकते हैं।
———————————
लेखिका नमिता गार्गी रायपुर के एक निजी स्कूल में कला शिक्षिका के तौर कार्यरत है। वे पिछले 16 वर्षों कला शिक्षिका के रूप में सेवारत है। उन्होंने मानसिंह विश्वविद्यालय ग्वालियर से फाइन आर्ट की डिग्री ली है। फिलहाल एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह से पीएचडी की पढ़ाई कर रही है।