समकालीन कवि और शायरों की दुनिया में पॉपुलर मेरठी वो नाम हैं जिन्हें सुनते ही लोगों के होंठों पर मुस्कान तैर जाती है. वाचिक परंपरा के बेहतरीन शायर और कवि कहन के विशेष अंदाज से श्रोताओं पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं. उनकी रचनाएं हँसाती हैं, गुदगुदाती हैं. इंसान कितने भी तनाव में हो, उदास हो, पॉपुलर मेरठी की कविताएं सुनकर ना केवल हँसता है, बल्कि स्थिति यह आ जाती है कि हँसते-हँसते पेट में बल तक पड़ जाते हैं.
मियां-बीवी की नोक-झोंक पर पॉपुलर मेरठी के कई किस्से हैं. ‘ख़ुदा खैर करें’ भी ऐसा ही एक किस्सा है. आप भी गौर फरमाएं-
एक बीवी कई साले हैं ख़ुदा खैर करे
खाल सब खींचने वाले हैं ख़ुदा खैर करे
तन के वो उजले नजर आते हैं जितने यारो
मन के वो इतने ही काले हैं ख़ुदा खैर करे
कूचा-ए-यार का तय होगा सफर अब कैसे
पांव में छाले ही छाले हैं ख़ुदा खैर करे
मेरा ससुराल में कोई भी तरफ-दार नहीं
उन के होंटों पे भी ताले हैं ख़ुदा खैर करे
क्या तअज्जुब है किसी रोज हमें भी डस लें
साँप कुछ हम ने पाले हैं ख़ुदा खैर करे
ऐसी तब्दीली तो हम ने कभी देखी न सुनी
अब अंधेरे न उजाले हैं ख़ुदा खैर करे
हर वरक़ पर है छपी गैर-मोहज़्जब तस्वीर
कितने बेहूदा रिसाले हैं ख़ुदा खैर करे
‘पॉपुलर’ हाथ में कट्टा है तो बस्ते में हैं बम
बच्चे भी कितने जियाले हैं ख़ुदा खैर करे।
हास्य में कब और कहां कितनी गहरी बात कह जाएं, ये पॉपुलर मेरठी का खास अंदाज रहा है. चुनावों का मौसम चल रहा है और भारतीय राजनीति पर भी पॉपुलर मेरठी ने खूब तंज किए हैं. इसकी एक बानगी उनकी इस रचना में देखी जा सकती है-
एक लीडर से कहा ये मैं ने कल ऐ ‘पॉपुलर’
तू इलेक्शन में अगर हारा तो क्या रह जाएगा
अपने गुंडों की तरफ देखा और उस ने यूं कहा
जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा।
उत्तर प्रदेश के मेरठ में 9 अगस्त, 1953 को जन्मे सैयद निज़ामुद्दीन शाह को ही लोग पॉपुलर मेरठी के नाम से जानते हैं. उन्होंने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि हासिल की. हास्य विधा में विशेष योगदान के लिए पॉपुलर मेरठी को ‘काका हाथरसी सम्मान’ से सम्मानित किया जा चुका है. ‘शैतान आधा रह गया’ रचना में भी पॉपुलर मेरठी ने राजनीति और हालात पर करारा कटाक्ष किया है-
फत्ह करने के लिए मैदान आधा रह गया
आधा पूरा हो गया अरमान आधा रह गया
कर्ज़ जतनों ने लिए थे हो गए सब लापता
शम्अ की मानिंद घुल कर ख़ान आधा रह गया
कांग्रेस और जनता दल में बट गए सूबे तमाम
फिर तो यूं कहिए कि हिन्दोस्तान आधा रह गया
मानता हूं मैं कि तेरी मेजबानी कम न थी
लौट कर फिर क्यूं तिरा मेहमान आधा रह गया
सरहदों पर जंग का अंजाम था सर पर सवार
डर के मारे फौज का कप्तान आधा रह गया
तेरा आधा काम खुद इंसान ही करने लगे
काम तेरा अब तो ऐ शैतान आधा रह गया
आप की ऐसे में आखिर मैं तवाज़ो क्या करूं
आप के आए कदम जब नान आधा रह गया
बारहा मैं कह चुका उस चोर से होश्यार रह
तेरे कमरे का हर इक सामान आधा रह गया
नाज जितना था वो सब मुखिया की भैंसें चर गईं
और कल्लू-राम का खलियान आधा रह गया
वालिदा राजी हैं उन की और वालिद हैं खफ़ा
अब तो शादी का मिरी इम्कान आधा रह गया
आह अब दो चारपाई की भी गुंजाइश नहीं
खिंच गई दीवार और दालान आधा रह गया
लड़-झगड़ कर ‘पॉपुलर’ वो अपने घर को चल दिया
शाएरी रुख़्सत हुई दीवान आधा रह गया।
पॉपुलर मेरठी अपनी रचनाओं में समकालीन मुद्दों को उठाते हैं. खास बात ये है कि वे हँसी-हँसी में बड़ी से बड़ी मारक बात कह जाते हैं, और वह भी किसी को टारगेट किए बिना ही. पॉपुलर मेरठी ने अपने करियर की शुरूआत मेरठ कॉलेज में उर्दू अध्यापक के रूप में की थी. वे अपने पढ़ाने के खास अंदाज के चलते बहुत जल्द ही कॉलेज के छात्रों के चहेते बन गए. कवि सम्मेलन और मुशायरों में व्यस्तता बढ़ने के कारण पॉपुलर मेरठी ने नौकरी छोड़कर खुद को पूरी तरह से साहित्य के लिए समर्पित कर दिया.
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FIRST PUBLISHED : December 1, 2023, 12:13 IST