हाइलाइट्स
बरकतउल्लाह खान वर्ष 1971 में राजस्थान के पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री बने थे
बरकत ने जिस लड़की से प्यार किया, उससे चार सालों तक नहीं मिल पाए फिर एक पार्टी में मिले
राजस्थान में विधानसभा चुनावों के बाद अब बारी चुनाव परिणामों के आने की है. हालांकि एग्जिट पोल वहां के चुनाव परिणाम को लेकर बंटे हुए हैं. जब बात राजस्थान और चुनावों की हो रही है तो हम आपको इस राज्य के अकेले उस मुख्यमंत्री की कहानी बताते हैं, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भाभी कहता था. वह लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ा. वहीं अपनी हिंदू क्लासमेट से प्यार हो गया. तो बाद में उससे शादी भी की. हालांकि ये पूरी प्रेम कहानी काफी घुमाव वाली थी.
ये थे बरकतुल्लाह खान, जो राजस्थान के इकलौते मुख्यमंत्री थे. उनकी लव स्टोरी भी सुपरहिट थी. वह जोधपुर में 25 अक्टूबर 1920 में पैदा हुए थे. उनका निधन 11 अक्टूबर 1973 में जयपुर में तब हुआ जबकि वह राजस्थान के मुख्यमंत्री थे. राज्य की ही तिजारा विधानसभा सीट से वह तब विधायक थे. इंदिरा गांधी ने उन्हें लंदन फोन करके कहा, प्यारे मियां आपको राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है. तुरंत आकर यहां ये पद ग्रहण करो.
रातोंरात फ्लाइट पकड़कर दिल्ली पहुंचे
ये 09 जुलाई 1971 का दिन था, जब वह राजस्थान के मुख्यमंत्री बने. बरकतउल्लाह रातोंरात लंदन से फ्लाइट पकड़कर दिल्ली पहुंचे. दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस सुप्रीमो इंदिरा गांधी से मिले. उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कराई गई. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें हार्टअटैक पड़ा. 53 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया.
इंदिरा को भाभी बोलते थे, फिरोज गांधी के दोस्त थे
प्यारे मियां यानि बरकतउल्लाह खान इंदिरा गांधी को भाभी ही बोलते थे, क्योंकि वह फिरोज गांधी के दोस्त थे. जब वह मुख्यमंत्री बने तब केवल कश्मीर में ही मुस्लिम सीएम थे. इस लिहाज से वह देश के दूसरे मुस्लिम सीएम बने थे. उनसे पहले 1967 में एम. फारुख पांडिचेरी के सीएम रहे लेकिन तब वह पूर्ण राज्य नहीं था.
जोधपुर में छोटे कारोबारी परिवार में पैदाइश
बरकतुल्लाह खान जोधपुर के एक छोटे कारोबारी परिवार में पैदा हुए थे. पढ़ाई करने वह लखनऊ यूनिवर्सिटी गए. यहीं वह फिरोज़ गांधी के दोस्त बने और यहीं उनकी वो प्रेम कहानी भी शुरू हुई जो बाद के सालों में बहुचर्चित रही.
लखनऊ यूनिवर्सिटी में भा गई वो लड़की
यूनिवर्सिटी में बरकत मियां लॉ फैकल्टी की एक जूनियर लड़की से मिले. उसका नाम था – ऊषा. परिचय के समय ही ऊषा ने बरकत से कहा, मैं ऊषा मेहता हूं लेकिन आप मुझको ऊषा ही कहें. मैं ये जाति-धर्म नहीं मानती. ये उन दिनों की बात है जब जाति से उठकर ही लोग सोच नहीं पाते थे, अंतरजातीय शादियां बवंडर खड़ा कर देती थीं, तब धर्म को लेकर ये कहना बहुत बोल्ड कदम था.
चल पड़ी प्रेमकहानी
बरकत को तो ये लड़की और उसकी बोल्डनेस तभी भा गई. कैंटीन में साथ ब्रेकफास्ट करते हुए उनकी प्रेमकहानी को पंख लगे. लेकिन अड़चनें और भी थीं. एक तो बरकतउल्लाह सीनियर थे, दूसरे धर्म के थे और ऊषा से 15 साल बड़े भी थे.खैर प्रेम कहानी चलती रही.
लेकिन इस लवस्टोरी में ट्विस्ट भी है
बरकत यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई करके पास हुए लेकिन ऊषा अभी वहां पढ़ ही रही थीं. ऊषा के साथ बने रहने के लिए बरकत ने पढ़ाई के बाद राजस्थान जाना ही कैंसिल कर दिया. वह लखनऊ में ही वकालत की प्रैक्टिस करने लगे. लेकिन इस प्रेमकहानी में अभी घुमाव तो आना था.
बरकत राजस्थान में मंत्री बन गए
साल था 1948. तब राजस्थान नहीं बना था. लोकप्रिय नेता जयनारायण व्यास. वह वहां लोकप्रिय सरकार बनाने में जुटे थे. व्यास एक दिन बरकत के घर पहुंचे. उन्हें अपनी सरकार में एक मुस्लिम चेहरा भी चाहिए था. लिहाजा उन्होंने बरकत को मंत्री बनाने की इच्छा जताई. बरकत मंत्री बन गए तो लखनऊ भी छूट गया.
लखनऊ छूटा और ऊषा का साथ भी
लखनऊ छूटा तो ऊषा का साथ भी छूटा. ऊषा बहुत मायूस हुईं. आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चली गईं. दोनों को लगा कि सबकुछ खत्म हो गया है. ऊषा लंदन में तीन साल रहीं. फिर एक पार्टी में करीब चार साल बाद दोनों फिर टकरा गए. बरकत फिर उनके सामने थे. ऊषा को लग रहा था कि इतने साल में तो बरकत उन्हें भूल चुके होंगे. शादी भी कर चुके होंगे. लेकिन ऐसा था नहीं .
फिर एक पार्टी में 04 साल बाद मिले
पार्टी में जब दोनों की आंखें मिलीं और दोनों आमने-सामने हुए तो ऊषा ने पहला सवाल दागा, और कैसी चल रही है आपकी शादीशुदा जिंदगी. बरकत ने तपाक से जवाब दिया, कैसी शादी. शादी तो तुमसे करनी थी. जब तुम ही नहीं थी तो शादी कैसे होती. मैं तो अब भी वहीं खड़ा हूं. जिंदगी शायद इसी तरह चलती रहेगी.
प्यार फिर छाने लगा, शादी हुई
तो प्रेम की कोंपलें फिर फूट पड़ीं. फिर दोनों एक दूसरे में डूब गए. कुछ समय बाद दोनों ने शादी करने का फैसला किया. कोर्ट में शादी हुई. दोनों में किसी ने मजहब नहीं बदला. हालांकि शादी पर धर्म को लेकर ज्यादा एतराज भी नहीं हुआ.
राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हो गए
1949 में राजस्थान बना. उधर बरकत जोधपुर की स्थानीय राजनीति में लगातार सक्रिय हो रहे थे. फिरोज गांधी से दोस्ती भी सियासत में उन्हें आगे बढ़ा रही थी. जैसे जैसे फिरोज का सिक्का राजनीति में चला वैसे वैसे राजस्थान की राजनीति में बरकत भी बढ़ने लगे. वह राज्यसभा पहुंचे. फिर उन्होंने राजस्थान की राजनीति में रहने के लिए विधानसभा चुनाव लड़ा. जीते विधायक बने. मंत्री बने.
इंदिरा के साथ खड़े रहे
इंदिरा उन्हें व्यक्तिगत तौर पर जानती थीं. वह इंदिरा गांधी को हमेशा भाभी कहते थे. प्रधानमंंत्री बनने के बाद भी वह इंदिरा को इसी भाभी संबोधन से मुखातिब होते थे. जब 1969 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को तोड़ दिया तो राजस्थान में तत्कालीन मुख्यमंत्री सुखाड़िया और उनके विधायक इंदिरा के खिलाफ हो गए. तब वहां केवल चार विधायक ही इंदिरा के साथ थे, जिसमें एक बरकतउल्लाह भी थे.
बरकतउल्लाह मुख्यमंत्री बने
1971 के चुनाव में जब इंदिरा गांधी ने अपनी बनाई कांग्रेस को जीताकर केंद्र से लेकर राज्यों तक में सरकार बनाई तो उन्होंने सुखाड़िया को हटाकर बरकतउल्लाह को मुख्यमंत्री बनाया. बरकतुल्लाह की छवि बेहतर प्रशासक की थी. लेकिन बरकत मियां एक ओर सरकार के साथ राजस्थान की समस्याओं से जूझ रहे थे तो उनका अपना स्वास्थ्य भी खराब होने लगा था.
फिर ऊषा भी राज्यसभा पहुंचीं
11 अक्टूबर 1973 को उन्हें जबरदस्त हार्टअटैक पड़ा और वह बचाए नहीं जा सके. उनके पीछे रह गईं उनकी पत्नी ऊषा और उनकी मां और बहन. ऊषा मेहता को लोग उन्हें ऊषी खान के नाम से जानते थे. 1976 में ऊषी को राज्यसभा के लिए चुन लिया गया. 2014 में उनका भी निधन हो गया.
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Tags: Assembly election, CM Rajasthan, Congress, Indira Gandhi, Muslim leaders
FIRST PUBLISHED : December 1, 2023, 10:44 IST